जमानत नियम और जेल अपवाद : सुप्रीम कोर्ट

PMLA से जुड़े एक मामले में सुप्रीम कोर्ट कहा की, जमानत नियम है जब की हिरासत अपवाद।





धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) के तहत जमानत पर आज सुप्रीम कोर्ट का फैसला महत्वपूर्ण निहितार्थ रखता है, विशेष रूप से व्यापक कानूनी सिद्धांत के संदर्भ में कि "जमानत एक कानूनी दायित्व है।" 

भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) के तहत आरोपी व्यक्तियों की जमानत के संबंध में एक महत्वपूर्ण फैसला जारी किया।

न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि "जमानत नियम है, जेल अपवाद है" का सिद्धांत धन शोधन से जुड़े मामलों में भी लागू होता है। इस फैसले के कई मामलों पर व्यापक प्रभाव पड़ सकता है।

अदालत ने यह फैसला झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से जुड़े धन शोधन मामले में आरोपी प्रेम प्रकाश को जमानत देते हुए किया।

न्यायमूर्ति बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति के.वी. विश्वनाथन की पीठ ने दोहराया कि व्यक्ति की स्वतंत्रता आदर्श है और उसका वंचन अपवाद है जिसे उचित कानूनी प्रक्रिया के माध्यम से उचित ठहराया जाना चाहिए।

न्यायालय ने स्पष्ट किया कि यद्यपि पीएमएलए की धारा 45 जमानत देने के लिए कुछ शर्तें लगाती है, लेकिन यह संविधान के अनुच्छेद 21 में निहित स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का हनन नहीं करती है।


जांच अधिकारियों के समक्ष अभियुक्त द्वारा किया गया इकबालिया बयान सामान्यतः साक्ष्य के रूप में स्वीकार्य नहीं होगा।

इसके अतिरिक्त, न्यायालय ने फैसला दिया कि पीएमएलए के तहत जांच अधिकारियों के समक्ष अभियुक्त द्वारा किया गया इकबालिया बयान सामान्यतः साक्ष्य के रूप में स्वीकार्य नहीं होगा। इसे भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 25 के तहत प्रदत्त सुरक्षा के अनुरुप है।

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